ग्रामीण भारत में आर्थिक प्रबंधन के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयास अन्य क्षेत्रों के विकास के लिए हो सकते हैं कारगर

Opinion

ग्रामीण भारत में आर्थिक प्रबंधन के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयास अन्य क्षेत्रों के विकास के लिए हो सकते हैं कारगर

लेखक – सचिदानन्द शुक्ला

पहली तिमाही में जीडीपी के आंकड़ों के आधार पर विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने विकास के लिए निराशावादी पूर्वानुमान जताए हैं। उनका अनुमान है कि तिमाही में पहले से बेहद धीमी चाल चल रही अर्थव्यवस्था आने वाले समय में और अधिक लुढ़क जा सकती है। स्वाभाविक है, इस गंभीर स्थिति पर चर्चाएं जारी हैं कि नीचे जा रही अर्थव्यवस्था को कैसे दोबारा पटली पर लाया जाए। जहां एक ओर ज़्यादातर अर्थशास्त्री भावी विकास को लेकर चिंतित हैं, वहीं दूसरी ओर इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए वे दो भागों में बंटे प्रतीत होते हैं।

जहां तक हमारी चिंता का सवाल है, हमारा मानना है कि सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सही तरीके से हैंडल कर काफी हद तक इसका समाधान किया जा सकता है, ऐसे में कृषि क्षेत्र के पुनरूत्थान पर ज़ोर देने की आवश्यकता है।

आंकड़ों से साफ है कि कोविड के जोखिम के बावजूद भी देश की कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था ठीक-ठाक रही है, चूंकि देश के छोटे नगरों और गांवों में वायरस का प्रसार कम हुआ है। जहां एक ओर पहली तिमाही में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में सालाना आधार पर ~24 फीसद की गिरावट आई, वहीं दूसरी ओर कृषि का आउटपुट 3.4 फीसद बढ़ा है। वास्तव में कृषि एकमात्र क्षेत्र हैं जहां वित्तीय वर्ष 21 में विकास का अनुमान है।

तो सरकार द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रबंधन से हम क्या सीख सकते है, और कैसे इस आधार पर अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाया जा सकता है। इसके चार मुख्य तरीके सामने आये हैं।

समय पर हस्तक्षेप किया जाना और आपूर्ति श्रृंखला पर ध्यान दिया जाना

लॉकडाउन होते ही सरकार ने रबी की प्राप्ति को तेजी से सील कर दिया। केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने मैनपावर एवं मशीन के आवागमन को सुगम बनाने के लिए ज़रूरी दिशानिर्देश जारी किए। इसके अलावा एफसीआई और राज्य प्राप्ति एजेंसियों ने 39 मिलियन टन गेहूं खरीदा, जो पिछले साल की तुलना में तकरीबन 14 फीसदी अधिक था। यह 2012-13 के पिछले रिकॉर्ड- 38.2 मिलियन टन से भी अधिक था, और यह सब महामारी के बीच किया गया। प्राप्ति केंद्रों की संख्या को 15,000 से बढ़ाकर 22,000 किया गया, ताकि किसानों को अपने उत्पाद के लिए उचित बाज़ार मिले और बिक्री में किसी तरह की रुकावट न आए। साथ ही बर्बादी भी न हो। आखिरकार रबी के विपणन मौसम के दौरान एमएसपी के द्वारा लगभग 4.2 मिलियन किसानों को 750 अरब रुपये का भुगतान किया गया।

आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित करने के लिए सरकारी खर्च पर ध्यान दिया जाना

केंद्र ने वित्तीय वर्ष 21 के पहले चार महीनों में कृषि और ग्रामीण विकास पर 1.9 लाख करोड़ रुपये खर्च किए। यह पिछले साल की तुलना में 63.4 फीसदी अधिक था। केंद्र ने वित्तीय वर्ष की शुरूआत होते ही अपने पीएम-किसान योजनाकी पहली किस्‍त (2000 रुपये) का हस्तांतरण  किया। जिससे तकरीबन 9 करोड़ किसानों को लाभ हुआ।  सरकार ने वित्तीय वर्ष 21 के लिए MGNREGA हेतु बजट को 400 अरब से बढ़ाकर रिकॉर्ड 1 लाख करोड़ रुपये पर पहुंचाया। इसके चलते पिछले साल की तुलना में अप्रैल-अगस्त 2020 के दौरान 50 फीसदी अधिक रोजगार उत्पन्न हुए ।  सरकार ने अस्थायी ग्रामीण कार्य योजना (गरीब कल्याण रोज़गार योजना) के तहत जून माह में 6 राज्यों के 116 ज़िलों में लौटने वाले प्रवासी मजदूरों के लिए 500 अरब रुपये जारी किए और सुनिश्चित किया कि मौजूदा परियोजनाओं जैसे रेलवे, ग्रामीण आवास, पीएम ग्राम सड़क योजना आदि को तेज़ी से पूरा किया जाए। प्रोग्राम के पहले सात सप्ताहों के दौरान 167.8 अरब रुपये खर्च किए गए, जिससे 21 करोड़ मजदूर दिवसों का रोज़गार उत्पन्न हुआ।

विभिन्न क्षेत्रों को सहयोग प्रदान करने के लिए ऋण की पर्याप्त उपलब्धता को सुनिश्चित किया जाना

केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र के लिए पर्याप्त ऋण सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं। रबी की कटाई के बाद और खरीफ की तैयारी के लिए छोटे एवं सीमांत किसानों को सहयोग प्रदान करने हेतु 300 अरब रुपये का आपातकालीन फंड जारी किया। इसके अलावा किसान क्रेडिट कार्ड्स के ज़रिए 2 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त रियायती ऋण भी दिया गया। सरकार ने किसानों, किसान संगठनों, कृषि सोसाइटियों, स्वयं-सहायता समूहों एवं सरकारी एजेंसियों को दिए जाने वाले ऋण पर आंशिक क्रेडिट गारंटी के साथ ब्याज पर 3 फीसदी तक की छूट भी दी।

विभिन्न क्षेत्रों में दीर्घकालिक विकास की संभावना को सुनिश्चित करने के लिए संरचनात्मक सुधारों पर ध्यान केन्द्रित किया जाना

सरकार ने कई संरचनात्मक सुधारों के साथ कृषि के लिए अनुकूल नीतियों को बढ़ावा दिया है जो लम्बी दौड़ में सेक्टर के विकास के लिए फायदेमंद साबित होंगी। इनमें शामिल है- अनाज, दालों, तिलहन, आलू एवं प्याज के विनियमन के लिए अनिवार्य वस्तु अधिनियम में संशोधन, स्टॉक सीमा को हटाना, एपीएमसी अधिनियम में संशोधन के साथ कृषि विपणन में सुधार तथा कॉन्‍ट्रैक्ट फार्मिंग कानून पेश करना। सरकार ने कटाई के बाद की सेवाओं जैसे कोल्ड चेन और स्टोरेज के लिए 1 लाख करोड़ रुपये के फार्मगेट इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड की स्थापना भी की है।

निश्चित रूप से, बारिश में भारी गिरावट आई है, किंतु यह समझना महत्वपूर्ण है कि उपरोक्त प्रयासों के चलते कृषि क्षेत्र एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ज़रूरी सहयोग प्राप्त हुआ है। अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में भी इसी तरह के प्रयास अर्थव्यवस्था के सुधार में कारगर साबित हो सकते हैं। जहां एक ओर जीडीपी में ~8-10 फीसद गिरावट के अनुमान लगाए जा रहे हैं, आतिथ्य, होटल एवं रेस्टोरेन्ट, रियल एस्टेट, निर्माण, कमर्शियल वाहन, विमानन, कैपिटल गुड्स के क्षेत्र विशेष रूप से संवेदनशील बने हुए हैं। हमारा अनुमान है कि इन क्षेत्रों में 40-50 फीसद तक की गिरावट आ सकती है। इसके अलावा सुधार में ज़्यादा लंबा समय लग सकता है। ऐसे में कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों की तरह इन क्षेत्रों पर विशेष रूप से ध्यान देना ज़रूरी है, ताकि ऋण ओर बेरोज़गारी के संकट को दूर कर इन क्षेत्रों में उत्पादकता बढ़ाई जा सके। सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में किए गए प्रयास, अन्य क्षेत्रों के लिए भी कारगर हो सकते हैं और देश के समग्र आर्थिक विकास को प्रोत्साहित कर सकते हैं।

लेखक- श्री सच्चीदानन्द शुक्ला

(लेखक महिंद्रा एंड महिंद्रा के प्रमुख अर्थशास्‍त्री हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।) 

सौजन्य : दैनिक जागरण

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